08 मार्च 2009

साचे बैन

जरा सोचिये
अगर हम सुखी रहना चाहते हैं तो हमें अपना फोकस, अपना ध्यान "मेरा मेरा" नहीं करना चाहिये। कयोंकि ऐसा करने से शान्ति चली जाती है। लेकिन आज के युग में हम अपना मतलब नहीं देखेंगे तो भी हो सकता है हमारी आरथिक बैलगाड़ी लड़खड़ा जाएगी। पैसा सुख न भी ला पाए तो पैसे की कमी दुख ला ही सकती है। ये समाज ऐसा बन गया है़। चारों तरफ कलेष फैल गया है। उसके पीछे लालच। उसके पीछे असुरक्षा। उसके पीछे सुख दुख के कारिकारण को न समझ पाना। उसके पीछे बुद्धि का कुन्द होना। उसके पीछे मन को अशुभ मामलों में रस मिलना। उसके पीछे फूटी किस्मत। उसके पीछे विपरीत परिस्थिती। उसके पीछे अशूभ कर्म। उसके पीछे कुबुद्धि। उसके पीछे मन को अशुभ मामलों में रस मिलना। वगैरह।जल ० डिग्री पर जमता है, १०० पर उबलता है। वो उसकी प्रकृति है। वो उससे बँधा है। उसे चाइस यानी चनने का अधिका नहीं है। मानव को है। अगर मानव, मानव समाज दुखी है, कलेषित है, कलह में है, तो जाहिर है कि उसका बरताव ठीक नहीं है। सर्वत्व उसे कह रहा है कि वो गलत रास्ते पर है। तो सही रास्ता क्या है?कौनसा ऐसा बरताव है, ऐसे कर्म हैं जो मानव की सच्ची प्रकृति हैं?जिस बरताव से लंबे समय तक शांति और सुख मिले। कौनसा ऐसा तरीका है जीने का जिससे प्यास बुझे। मन में जोत जगे। मन में तेज आए। मन दूसरे का सुख छीनने में नहीं लगे। शक तनाव है। शक दीवार है। शक सिकुड़ना है। शक छोटा दिल है। शक बेचैनी है। शक दुख है।कहीं पढा कि अमरीका में सबसे दुखी पेशा वकील हैं। वकील का पेशा शक का है। वो किसी पे भरोसा नहीं करता।सबसे बड़ा धन बुद्ध ने मैत्री कहा है। जहाँ मैत्री होगी वहाँ समाज सुखी होगा, लोग एक दूसरे पर भरोसा करेंगे। भरोसा चैन है। भरिसा शान्ति है। भरोसा खुशी है। करूणा से मन शान्त होगा। करूणा से मन में ऊँचे विचार पकड़ने की ताकत आएगी। करूणा हिरदय को जगायेगी। करूणा हिरदय को निरमल बनाएगी। फिर वो आदमी बदल गया। फिर पुराना खुराफाती नहीं रहा। फिर वो समझ गया।मैत्री और करूणा वो दो पंख हैं जो मानव को दुख सागर से उड़ा ले जाते हैं। मूरख को देवता बनाते हैं। कठोर दिल में फूल खिलाते हैं। योगी को सिद्ध बनाते हैं। मन में शुभ विचार का गढ बनाते हैं। दोस्तों मैत्री और करूणा मानव की सच्ची प्रकृति, सच्चा व्यवहार हैं। क्योंकि जिसके पास ये दो हैं, वो सुखी है, प्रसन्न है, बुद्धिमान है, जगा है। वो सबका भला चाहता है।साची प्रीत हम तुमसों जोरीतुमसों जोर अवर संग तोरी। - श्री गुरु ग्रंथ साहिब