05 नवंबर 2012

राजस्थान के मरु अंचल के जैतारण में जन्मे दरियाव जी महाराज कबीर की भांति मारवाड़ में सदुपदेश और जनकल्याण को अपने जीवन का ध्येय बनाने वाले अनोखे संत थे ,

उनकी बातें लगती साधारण है लेकिन उनका महत्व और सीख दूरदर्शितापूर्ण है, जैसे -

दरिया गैला जगत से , समझ औ मुख से बोल ,
नाम रतन की गांठड़ी, गाहक बिन मत खोल,



दरियाव जी की सीख - साच का अंग




उत्तम काम घर में करे , त्यागी सबको त्याग ,



दरिया सुमिरे राम को , दोनों ही बडभाग ,



मिधम काम घर में करे , त्यागी गृह बसाय ,



जन दरिया बिन बंदगी , दोउ नरकां जाय ,



दरिया गृही साध को, माया बिना न आब ,



त्यागी होय संग्रह करे, ते नर घणा खराब ,



गृही साध माया संचे , लागत नांही दोख ,



त्यागी होय संग्रह करे , बिगड़े सब ही थोख ,



हाथ काम मुख राम है,हिरदे साँची प्रीत ,



जन दरिया गृही साध की, याही उत्तम रीत,



दस्त सूं दो जग करे मुख सुं सुमिरे राम ,



ऐसा सौदा न बणे, लाखों खर्चे दाम ,