09 मार्च 2009

मां


माँ
मेरे रोने से ,
उसके नयनों का झरना बहता था ,
मेरे ठुमकने से ,
उसका जी प्रसन्न ,
आत्मविभोर रहता था ,
जीवन में मेरी उदासी से,
उसका मन चिर- चिंतित रहता था,
क्यों की वह मां थी ,
मेरे जीवन के निर्माण और परिमाण ,
सबकी धात्री थी वह,
मेरे सुख और दुःख मे साथ देने वाली,
सहयात्री थी वह,
भगवान् को भूल गुनाह नही करूंगा,
पर उसे भूल,
मैं जीवन का गुनहगार बन जाऊंगा,
मैं उसका 'सूरज-चंदा' ,
उसके 'दिल का टुकडा',
उसे भूल उसका लाल नही,
मक्कार बन जाऊंगा,
प्रेम, त्याग, वात्सल्य, ममता सबकी,
पराकाष्ठा थी मां ,
केवल मेरी ही नही,
भगवान् की भी आस्था थी मां ,
हर असुरक्षा के अंदेशे पर ढाल बन गई थी,
मेरी हर विपदा संघर्ष की पतवार बन गई थी ,
उसके चरणों की रज पीकर,
मैंने गंगा जल पीना छोड़ दिया,
उसके आंसू,
जो मुझ पर अमृत बन गिरे,
मैंने अमर होने के लिए,
और कुछ पीना छोड़ दिया,
----- मां को समर्पित
रामगोपाल जाट