10 फ़रवरी 2009

तनाव मुक्ति के लिए प्रेक्षाध्यान

भौतिक प्रगति की तीव्र गति ने हमारे जीवन में अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। उसमें प्रमुख है, तनाव। आज हम निरंतर जबरदस्त दबाव एवं तनावों के बीच जी रहे हैं। वर्तमान की जितनी बीमारियां है, उनके पीछे तनाव की मुख्य भूमिका है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अनिद्रा, कैंसर आदि रोगों में निरंतर वृध्दि हो रही है।
वर्तमान युग अतिरिक्त सक्रियता और दौड़ धूप का युग है। प्रतिस्पर्धा के कारण नैतिक आचरण का जीवन में अभाव एवं अति व्यस्तता के कारण दबाव तनाव में वृध्दि हो रही है। जो हमारी सामान्य जीवन धारा को अस्त-व्यस्त कर देती है।
आधुनिक भाव जगत से संबंध रखने वाले आवेश एवं आवेग,र् ईष्या, प्रतिस्पर्धा, घृणा, भय, सत्ता एवं संपत्ति के लिए संघर्ष, लालसाएं और वहम भी आदमी के दबाव तंत्र को प्रभावित करते हैं। मनुष्य सहित सभी प्राणियों में संकट आने पर आंतरिक तंत्र सक्रिय हो जाता है। संकट मिटने पर शारीरिक एवं मानसिक स्थिति सामान्य हो जाती है। यह अनैच्छिक क्रिया तंत्र द्वारा स्वत: घटित होता है। संकट की स्थिति बार-बार आती है, एवं दबाव की स्थिति लम्बे समय तक बनी रहने पर गंभीर गड़बड़ पैदा हो जाती है। अनेक प्रकार के रोगों को पैदा करने में दबाव बड़ा निमित्त बनता है। इस प्रकार तनाव उत्पन्न होने के अनेक कारण हैं।
आधुनिक औषध विज्ञान द्वारा तनाव मुक्ति के लिए प्रश्नमक एवं निद्रा लाने की गोलियां अस्थाई लाभ पहुंचाती है पर लंबे समय तक इनका सेवन एक समस्या बन जाता है। हमारे भीतर प्रकृति ने इस समस्या से निजात पाने के लिए भी व्यवस्था कर रखी है। जब भय या अस्वाभाविक स्थिति का निर्माण होता है, तो उससे निपटने के लिए शरीर की सक्रियता बढ़ जाती है। इसका उल्टा शरीर को शांत एवं स्वस्थ बनाने वाले 'टोपो ट्रोफिक प्रतिक्रिया' के द्वारा प्रतिरोधी क्रिया की जा सकती है। यह खोज डॉ. वाल्टर, स्विट्जरलैंड के शरीर विज्ञानी ने की है। डॉ. हर्बर्ट बैन्सन ने इस 'तानव मुक्ति की प्रक्रिया' नाम दिया है। इसके अतिरिक्त सरल, सहज एवं सबके द्वारा की जा सकने वाली क्रिया कार्योत्सर्ग है। इसके निरंतर अभ्यास से व्यक्ति तनाव मुक्त रह सकता है। यह बचाव भी है तथा उपचार भी है। इस प्रक्रिया को सीखकर प्रतिदिन आधा घंटा से एक घंटा अभ्यास करने पर वह व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में तनाव मुक्त रह सकता है। हम दिन भर में नींद, विश्राम एवं क्रियात्मकता से कितनी ही बार गुजरते हैं। इसके अतिरिक्त एक क्रिया और है, उससे भी हम अनेकों बार गुजरते हैं। इन स्थितियों से निपटने के लिए यदि संपूर्ण कार्योत्सर्ग का अभ्यास जागरूकता से करें तो हम उस थकान एवं मानसिक क्षति से बच सकते हैं।
कार्योंत्सर्ग की क्रिया द्वारा मांसपेशियों रूपी विद्युत पहुंचाने वाले स्नायु संबंध स्थगित किए जा सकते हैं। जो नींद की प्रक्रिया से अधिक उत्तम हैं। इस शिथिलीकरण से उसमें विद्युत प्रभाव को बहुत कम स्थिति तक ले जाया जा सकता है। इसमें ऊर्जा की खपत को न्यूनतम किया जा सकता है।
अनेक घंटों की अव्यवस्थित नींद की अपेक्षा यह आधा घंटा की जागृतिपूर्वक शिथिलीकरण से व्यक्ति की थकान व तनाव को भलीभांति दूर किया जा सकता है



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