06 अगस्त 2010

नजर सुं निरख्या

जितरी पास नजर सुं निरख्या, उतरा ही दूर गिया,
जितरा हरख हिये में राख्या, भीतर घाव किया,
अन्तस री आतस उर जागी,
धपळक आग हिये में लागी,
प्रीत तणी अमूझ अभागी,
पिघल रळक नैणां में छागी,
ज्यूँ ज्यूँ जतन किया रोकण रा , प्याला छलक गिया,
जितरा हरख हिय में राख्या, उतरा घाव किया,
अंतस मन कुरलाव गावे,
गुंगो गैलो जगत बतावे
सुण सुण मन काया कळपावै
इ जग ने अब कुण समझावे
खा खा जगत थपेड़ा काठा हिम्मत हार गिया
जितरा हरख हिय में राख्या भितर घाव किया
मत कर मान सोच मन मैला
संभल पांव धर जगत झमेला
प्रीत रीत जवानी खेला
ऊमर ढळतां जीव अकेला
हुय सके अळगो ही रहणो, मत ना भूल किया
जितरा हरख हिय में राख्या, भीतर घाव किया
जितरी पास नजर सुं निरख्या ,
उतरा ही दूर गिया,
जितरा हरख हिय में राख्या,
भीतर घाव किया,

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