16 सितंबर 2009

आंसू


आंसू

कहतें है आंसू इंसान के सच का आईना होते है,
पर आज का इंसान तो झूठ को सच बनाने ,
ग़लत को सही बनाने,
हर एक कपट की ख़ुसी को गम के रूप मे जताने के लिए,
आँसू बहा रहा है,
हर कोई हर किसी को ठग लेना चाहता है,
पर नियती के न्याय के आगे अपने को ठगा महसूस करता है,
पर फिर भी इंसान,
जाने कहाँ जा रहा है,
जीने के लिए थोड़े से समान की ज़रूरत होती है,
उसने चार सो साल जीने का समान इकट्ठा कर लिया,
फिर भी ओर समान के लिए,
झूठी कसमें खा रहा है,
ये संसार एक मृग मरीचिका है,
सुखी वही है,
जो सब जानता है,
और अपना कर्तव्य निभा रहा है,


डा रामगोपाल जाट